जीवन एक द्वंद युद्ध (महाभारत) हैं,
जिसमें हम ही सारथी(कृष्ण) , हम ही अर्जुन हैं,
कभी अटकते, कभी भटकते, फिर भी आगे बढ़ते ।।
यहाँ पग - पग पर कौरव खड़े हैं,
बिछाये शकुनी मामा (छल कपट) अपनी शतरंज की बिसात, हमारा इंतजार कर रहे हैं ।।
चक्रव्यूह (हालात)मे हमे फँसाने का प्रयास करते,
और हम (अभिमन्यु) की तरह चक्रव्यूह को भेदने का दम भरते।।
दुर्योधन और दुशासन (ईर्ष्या और गुस्सा) आपको बार - बार उकसाते
और तब हम (युधिष्ठिर) की तरह संयम बरत जाते,
और कभी - कभी भीम की तरह गदा भी चला जाते।।
यहाँ माता कुंती (अबला नारी) को भी पल - पल प्रताड़ित करते,
और उसे द्रौपदी समझ उसका चीरहरण करने का प्रयास करते।।
मृत्य शय्या पर लेटा वो बूढ़ा है,
जैसे तीरो पर लेटा वो भीष्म पितामह हैं।।
यहाँ सरकार (धृतराष्ट्र) बन जाती,
और बड़ी - बड़ी मीडिया (संजय)के द्वारा आँखों देखा हाल सुनतीऔर सुना जाती।।
यहाँ आज भी देश का सिपाही (एकलव्य)गुरु दक्षिणा देने के लिए तैयार है,
अपनी मातृभूमि मे मर मिटने के लिए बेक़रार हैं।।
यहाँ मित्र भी कर्ण बन जाता,
बिना सोचे समझे किसी से भी लड़ जाता।।
एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)
Churahe se mahabharat ka rasta aasan na tha par umda laye me pero gaye har abhinaya aur abhinetri ko aaj ke samay me chitrit kar ke. Ek bahut behatreen sheeksha. Aabhar.
कहते हैं कि जो जगत में है वह सब महाभारत में है और जो इसमें नहीं है, वह कहीं भी नहीं है. महाभारत के पात्रों को आज के माहौल में प्रक्षेपित कर बात को भली प्रकार समझाया गया है. धन्यवाद, शरद जी.
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ये जीवन एक द्वन्द योध ही है जहाँ हर पल हम किसी न किसी सामस्य से लड़ रहे हैं, एक सटीक कविता जो आज के युग में भी उतनी ही सार्थक है जितनी महाभारत के दौर में थी। बेहद पसंद आयी, धन्यवाद, शरदजी.5 Stars