बस इतना ही फर्क पड़ता है Poem by Kezia Kezia

बस इतना ही फर्क पड़ता है

Rating: 5.0

जब तुम पास नहीं होते,

तो बस इतना ही फर्क पड़ता है।

चाय में चीनी ज्यादा नहीं होती,

जाड़ों की धूप भी सुहानी नहीं होती ।

खाने में नमक ज़रा भी कम नहीं होता,

अलमारी का सामान अस्त व्यस्त नहीं होता।

बारिश में भी सपने सूखे ही रहते हैं,

फर्श पर जूतों के निशाँ भी कहाँ रहते हैं।

दरवाजे से नजर नहीं हट पाती,

अखबार से दुश्मनी नहीं निभा पाती।

छोटी छोटी बातों पर नहीं झगड़ती,

उड़ती तितली को नहीं पकड़ती।

सुहाना मौसम भी बहुत अखरता है ।

डाली से जैसे टूटा गुलाब बिखरता है,

मुझे छोड़कर बाकी हर कोई संवरता है।

रसोई से भी धुँआ कहाँ उठता है,


आँगन भी कहाँ महकता है ।

बस इतना ही फर्क पड़ता है,

जिंदगी में रंग ज़रा सा घटता है।

***

Monday, September 21, 2020
Topic(s) of this poem: lonely,love and friendship,missing you
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 22 September 2020

Ye zara nahi... puri zindagi bechain ho jaati hai.....Behad umda.

0 0 Reply
Rajnish Manga 21 September 2020

बहुत खूब. न कह कर भी सब कुछ बयान कर देना इसी को कहते है शायद. बाकी सब ठीक ठाक है. धन्यवाद.

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success