जब तुम पास नहीं होते,
तो बस इतना ही फर्क पड़ता है।
चाय में चीनी ज्यादा नहीं होती,
जाड़ों की धूप भी सुहानी नहीं होती ।
खाने में नमक ज़रा भी कम नहीं होता,
अलमारी का सामान अस्त व्यस्त नहीं होता।
बारिश में भी सपने सूखे ही रहते हैं,
फर्श पर जूतों के निशाँ भी कहाँ रहते हैं।
दरवाजे से नजर नहीं हट पाती,
अखबार से दुश्मनी नहीं निभा पाती।
छोटी छोटी बातों पर नहीं झगड़ती,
उड़ती तितली को नहीं पकड़ती।
सुहाना मौसम भी बहुत अखरता है ।
डाली से जैसे टूटा गुलाब बिखरता है,
मुझे छोड़कर बाकी हर कोई संवरता है।
रसोई से भी धुँआ कहाँ उठता है,
आँगन भी कहाँ महकता है ।
बस इतना ही फर्क पड़ता है,
जिंदगी में रंग ज़रा सा घटता है।
***
बहुत खूब. न कह कर भी सब कुछ बयान कर देना इसी को कहते है शायद. बाकी सब ठीक ठाक है. धन्यवाद.
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Ye zara nahi... puri zindagi bechain ho jaati hai.....Behad umda.