मैं ठुकरा रहा हूँ, तुम अपना रही हो Poem by Kezia Kezia

मैं ठुकरा रहा हूँ, तुम अपना रही हो

किस अतिरेक में बह रही हो

मैं ठहरा हुआ हूँ और तुम चल रही हो

किन आस्थाओं में बँधी हो

मैं प्रसन्न हो रहा हूँ, तुम सहम रही हो

किस ज्योत्सना को पूज रही हो

मैं सिंचित हो रहा हूँ तुम जल रही हो

किस पुनरावलोकन में व्यस्त हो

मैं बाट जोह रहा हूँ, तुम आती नही हो

किस अभेद्य प्रयाग में फंस गयी हो

मैं हाथ थाम रहा हूँ और तुम छुड़ा रही हो

किस दूरदर्शिता को ताड़ गई हो

मैं वर्तमान में जी रहा हूँ, तुम विपरीत जा रही हो

किस सामंजस्य को निमिष कर रही हो

मैं ठुकरा रहा हूँ और तुम अपना रही हो

किन प्रमाणों को सिध करने पर अड़ी हो

मैं जी रहा हूँ और तुम मर रही हो

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Tuesday, April 4, 2017
Topic(s) of this poem: love,philosophy
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