थक के बेज़ार हो गए हैं चलते-चलते मौत की ज़ानिब।
जब तक साँसों में गर्मी है, जीने का एक बहाना ढूँढें।।
माना कि बहुत गहरा है मौसम में खिज़ां का रंग मगर।
अभी उम्मीद बाकी है, कोई पत्ता हरा ढूँढें।।
शोर-ओ-गुल और रार मची है इन बेदर्द हवाओं में।
भरने को रस इस जीवन में, एक अदद तराना ढूँढें।।
बहुत कर लिए शिकवे-शिकायतें इन नापाक अंधेरों के।
रौशन करने इन स्याह रातों को, एक नया सूरज ढूँढें।।
क्या बदलेंगे इस दुनिया को, ऐसी ही थी यही रहेगी।
नयी रवायतों के चलन को, खुद में एक ज़माना ढूँढें।।
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