रात घनी अँधेरी है, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

रात घनी अँधेरी है,

रात घनी अँधेरी है,
बाहर दीखता नहीं उजाला
हाथ को हाथ नहीं है सूझता,
अगल-बगल, आस-पास कोई नहीं,
किसी का नाम.पता नहीं,
और कहीं ठिकाना.नहीं,
कोई पूछने.वाला नहीं,
मोमबत्ती रही है जल, धीमे-धीमे,
पता नहीं,
कहीं यह भी न बुझ जाये!

Saturday, April 15, 2017
Topic(s) of this poem: love
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