रोज़ सुबह
मंद हवा के झोंकों की खनक,
उतावली चिड़ियों की चहक,
अमलतास के फूलों की महक,
जब अलसाई आँखों को हौले से छू जाती है,
तुम्हारी याद आती है।
भरी दोपहरी
ज़द्दोजहद में उलझे लोगों की लगन,
शबाब पर पहुंचे सूरज की अगन,
नाकामयाब माथों की शिकन,
जब भीड़ में अकेलेपन का अहसास दिलाती है,
तुम्हारी याद आती है।
शाम ढले
मासूम प्यार की मीठी यादें,
आशनां दिल की भोली फरियादें,
उम्मीदों की बेइन्तहा मीयादें,
जब खुशगवार माज़ी की रूह जगाती हैं,
तुम्हारी याद आती है।
फ़िर रात में
सो जाते हैं सारे अहसास,
बेरुख़ी की चादर ताने,
और एक नई सुबह के इंतज़ार में,
ज़िन्दगी के समुद्र की बेचैन लहरें,
जब दिल के सूनेपन से टकराती हैं,
तुम्हारी याद आती है।
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wow excellent poem...loved it!