महत्तत्व आप से ही सृजित। Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

महत्तत्व आप से ही सृजित।

जानकी स्वरूप कथन
हे जगदम्ब! सँसार परम कारण,
महत्तत्व आप से ही सृजित।
श्रुति करते हैं विचार यही,
कथन करते उद्भासित।।
बैखरी सृष्टि जगत कर,
चेष्टा शक्ति पर आधारित।
कार्य-कारण का अवलम्ब,
जगत-रचना बन जाती लखित।
हे माँ! हे जगत विधायिनी देवि!
'नवीन' कीजिए मोर सब.बिधि मँगल।
जय जय जय जनक नँदिनी, जय जय सीते चरण कमल।।

Monday, April 24, 2017
Topic(s) of this poem: religious
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