जानकी स्वरूप कथन
हे जगदम्ब! सँसार परम कारण,
महत्तत्व आप से ही सृजित।
श्रुति करते हैं विचार यही,
कथन करते उद्भासित।।
बैखरी सृष्टि जगत कर,
चेष्टा शक्ति पर आधारित।
कार्य-कारण का अवलम्ब,
जगत-रचना बन जाती लखित।
हे माँ! हे जगत विधायिनी देवि!
'नवीन' कीजिए मोर सब.बिधि मँगल।
जय जय जय जनक नँदिनी, जय जय सीते चरण कमल।।
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