शाँति-सुख वैभव-प्रदायी हे देव रवि! सँकल्प बना दें दृढ़ निश्चयकर,
आत्म-प्राण शक्ति परिपूण^ बने, सब बिधि हो मँगलमय हितकर।
तन-मन-वचन सहित हम करते, आप श्रीगुरुदेव में समर्पण,
स्वीकार करें मुझे हे देव भास्कर! चाहता 'नवीन' आप श्रीगुरु चरण शरण।।
नहीं समिधा न ही बुद्धि बल, न ही जानता देव! मँत्रोच्चारण,
केवल आर्त अनन्य अगतित्व शरणागत हम,
पाहि पाहि, हे गुरुवर! श्रीशरणम्।।
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