हम सब बच्चे मिलकर, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम सब बच्चे मिलकर,

हम सब बच्चे मिलकर,
जिंदगी का लुत्फ उठाते हैं।
आसमाँ भी देख तरसता,
दुनिया के लोग शरमाते हैं।।
आ गई यारों, गर्मी का मौसम,
हम भैंस चराने आए हैं।
चरते -चरते वे सब.थक गए,
अब आराम फरमाए हैं।।
घुस आए, भाई, पानी के अँदर,
सब जगह सरोवर सूखा है।
गड्ढे में जो बच गये हैं पानी,
उनमें न कहीं कोई धोखा है।।
खाना छोड़ अब सब.पानी पीते,
जल में सब मुँह छिपाते हैं।
आसमाँ भी देख तरसता,
दुनिया के लोग शर्माते हैं।।
हम सब ने भी अपने कपड़े उतारे,
कमर नीचे नेकर पहने हैं।
बदन पर तीखी धूप भले ही पड़ती,
लेकिन कुछ भी नहीं सहने हैं।।
हम सब भैंस सँग नहा रहे,
आसमाँ में एकटक तकते हैं।
दूर-दूर.तक कोई दिखाई न देता,
विहँग भी नभ में न दीखते हैं।।
कभी-कभी हवाई-जहाज गुरा^ता,
हम सबको दर्शन देते हैं।
आसमाँ भी देख तरसता,
दुनिया के लोग शर्माते हैं।।
मस्ती खरीदने पर बाजार में न मिलती,
लेकिन यहाँ मुफ्त में मस्ती है।
हम सब भाई मिल कर बैठे,
कहीं किसी में न कभी सुस्ती है।।
भैंस और हम, एक परिवार हैं, भाई,
सफेद दूध पीने का.नाता है।
यह कहीं और कभी न हो सकता,
माता-पूत का नाता है।।
हम सब जीव-जगत के प्राणी,
प्यार का अनमोल गीत गाते हैं।
आसमाँ भी देख तरसता,
दुनिया के लोग शर्माते.हैं।।
गर्मी हो या.सर्दी भाई, ,
भैस चराना मेरा काम है।
साथ रहना, साथ खिलाना,
बस यही हमारा सुखधाम है।।
भैंस का दूध निकाल कर बेचना,
यही हमारा प्यारा पेशा है।
इसी भैंस ने हम सब.पूरे परिवार,
आज तक पाला-पोषा है।।
इसी की शरण में जिंदगी हमारी,
'नवीन'भैसवाहिनी चरण हम.बसते हैं।
आसमाँ भी देख तरसता,
दुनिया के लोग शर्माते हैं।।

Monday, April 24, 2017
Topic(s) of this poem: childhood
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