करते हैं रुख़सत Poem by Pushpa P Parjiea

करते हैं रुख़सत

करते हैं रुख़सत ज़माने से

ज़नाज़े को कन्धा दे देना

आये थे ख़ामोशी के संग

जाते भी हैं ख़ामोशी के संग

यादें लिए और दिए जाते हैं बहुत सी

यादों में बसा लेना

कभी कर ली बातें मन की

कभी बहला लिया दिल अपना

कभी उदासियों ने पकड़ा दामन अपना

दोस्तों ने हंसा दिया कुछ कहकर

अब थक गए हैं कदम इन राहों पर चल चल कर.

दिख रही है मंज़िलें अंत की जब नज़र आये दिन में सितारे

धुंध सी छा गई आखों में घूमते से नज़र आये नज़ारे

माफ़ करना दोस्तों यदि दिल दुखा हो किसी का मेरी तबियत(वजह) से

दूर न होना जरूर आना देने कन्धा मेरी मैयत में
अलविदा नहीं कहते दोस्तों कहलवाती है अलविदा ये हसरतें
हुआ कभी फिर से मिलना तो गले से लगा लेना हमें[/

Saturday, April 29, 2017
Topic(s) of this poem: abc
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