करते हैं रुख़सत ज़माने से
ज़नाज़े को कन्धा दे देना
आये थे ख़ामोशी के संग
जाते भी हैं ख़ामोशी के संग
यादें लिए और दिए जाते हैं बहुत सी
यादों में बसा लेना
कभी कर ली बातें मन की
कभी बहला लिया दिल अपना
कभी उदासियों ने पकड़ा दामन अपना
दोस्तों ने हंसा दिया कुछ कहकर
अब थक गए हैं कदम इन राहों पर चल चल कर.
दिख रही है मंज़िलें अंत की जब नज़र आये दिन में सितारे
धुंध सी छा गई आखों में घूमते से नज़र आये नज़ारे
माफ़ करना दोस्तों यदि दिल दुखा हो किसी का मेरी तबियत(वजह) से
दूर न होना जरूर आना देने कन्धा मेरी मैयत में
अलविदा नहीं कहते दोस्तों कहलवाती है अलविदा ये हसरतें
हुआ कभी फिर से मिलना तो गले से लगा लेना हमें[/
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