शरणार्थी
सांसों की डोर ना टूटे,
ये ही आज मेरी तमन्ना है ।
खतरे में है मेरा वजूद,
उसे बचाने की जद्दोजहद में लगा हूं।
जंगल लांधे दरिया,
लांधे बड़े-बड़े समुंदर।
आज इस बेगानी धरती पर,
आस टिकाऐ खड़ा हूं।
याचक हूं आज मैं,
कल तक दाता बना था ।
औरो का सहारा था,
आज मोहताज बना हूं।
इंसानियत के नाम पर,
दुनिया साथ है मेरे,
टेंट, दवाइयां, कपड़े, रोटी,
भेज सभी रहे मुझको ।
मेरी जन्मस्थली अशांत है,
ना चैन है ना सुकून,
जिंदगी की डोर न जाने कब टूट जाए,
इसका भी ना किसी को कुछ पता है ।
मैं शरणार्थी हूं,
मेरा वजूद हमेशा से ही कायम है ।
जब से इस धरती पर आया,
खून खराबा मारकाट साथ लाया,
लोग जान बचाकर पहले भी भागते थे,
आज भी भाग रहे हैं ।
आधुनिक समय में यह समस्या,
विकराल रुप धारण किये हैं,
आधी धरती खून से सनी है,
शांति अमन की आस लिये,
इंसान भागा भागा फिर रहा है ।
और शरणार्थी का तमगा,
उस पर चस्पा हो गया है ।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
आधी धरती खून से सनी है, इंसान भागा भागा फिर रहा है.... शरणार्थी.... //.... कविता एक भयावह सत्य से रू-ब-रू करवाने का एक सफल प्रयास है.