कमजोर दिल Poem by Shipra singh (ships)

कमजोर दिल

तुमने तो हर वक्त खुद को मजबूत बनाया,
हर आंसू और दुखों से खुद को दूर भगाया|

तुमने इतनी बड़ी असफलता पाई है
हैरानी है तुम्हारे चेहरे पर बिल्कुल उदासी नहींछाई है|

क्या कमाल है तुम्हारा दिल,
इतना गहरा जैसे झील |

हार के बाद ये व्यंग मुस्कान,
मेरे लिए समझना था आसान|

कहां से लाई तुमने इतनी हिम्मत,
जो ना मिली किसी जन्नत|

पता नहीं कहां गया तुम्हारे चेहरे का गम,
पता है नहीं है ये शरीर का दम|

आंसू तो नहीं आया हिम्मत थी हजार,
ताकत तो नहीं है
कोई तुमसे लड़ ले इतनी है नहीं किसी में मजार|

तुमने दुनिया से नहीं खुद से लड़ दिखाया है,
हारे हुए को जीतना सिखाया है|

इतना खुलकर हंसना,
सबका तुम पर फसना,
ये बात ताजूक की थी,
पर यह बात मैंने देखी थी|

Saturday, September 29, 2018
Topic(s) of this poem: weakness
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 29 September 2018

A nice poem on human weakness one one hand human courage on the other to withstand.

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