धरती ने कभी छोड़ा साथ नही,
इंन्सानो ने तोड़ा उसका विस्वास वही।
पहले के पुराणो ने जितना किहा है सम्मान,
आज उतना ही हो रहा है धरती का अपमान।
पुराणो में जब सिता माता पर कष्ट आया था,
तब धरती माँ ने ही उन्हे बचाया था।
इन्सानो ने धरती की दशा बिगाड़ी,
शुरू हुई अब विनाश रुपी गाड़ी।
हम तो खड़े है धरती के पावन पथ पर,
लगा रही है धरती चक्कर अपने पावन रथ पर।
धरती ने खुद को दबाया है,
हम इंन्सानो को सर पर चढ़ाया है।
इन्सान तो चक्कर लगा रहा है दिव्य धाती पर,
धरती तो चक्कर लगा रही है एक छोटे से ग्रहपथ पर।
इन्सान जमीन बेचता है एकड़ो में,
नही जानता धरती माँ हैं सैकड़ों में।
क्या पता कब धारती माँ इन्सानो से परेशान होकर
कब अपने छ्मता को खोकर,
कब अपने आत्मबल को खोकर,
धरती अपना मुहँ खोल देगी,
और इंन्सनो को अपने-आप में समा लेगी।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
शि
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Very good poem. Like it.