हम बारबार यह गल्ती क्यों करते हैं
कि
लोगों के सामने सदा हँसते -दीखते हैं,
अपने दिल की पीड़ा न किसी से कहते हैं,
आता है,
मन ख्याल,
कि
किसी को क्यों करुँ बेहाल,
क्यों मचा दूँ कहीं बवाल,
बढा दूँ सबके जिय जँजाल,
हो सकता है,
मेरा ही मजाक उड़ायें,
वाद -विवाद विषय बनायें,
डिक्शनरी में जुड़ जाये,
एक नया शब्द,
इसीलिए
नहीं निकल पाता कभी बाहर,
घुट -घुट कर रख लेता अपने अँदर,
तनहाई जब मिलने आता,
वह भी मुझसे मिल नहीं पाता,
अँधेरे को भी न कभी मैं कहता,
और
मुझे वह देख न सकता,
क्योंकि
अँधेरा नजर का अँधा,
आँखें उसकी जल्दी खुलती नहीं,
बन्द रहती आँखें सहज,
न दिखाई पड़ सकता उसे कभी,
उजाला उसे दिखाई पड़ सकता न कहीं,
और
उजाला जैसे ही आता,
समझत लेता,
आ गये देव भास्कर,
मुस्कान आ मिलती मँद-मँद,
मन गति बन जाती स्वच्छँद
किसी को क्या कहना है,
द्रष्टा बन मुस्कुराते रहता है,
मँद -मँद मुसकान लिए,
अधरों पर सुस्मित हास लिए,
सबके स्वागत के लिए।
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