साथिया Poem by Pushpa P Parjiea

साथिया

Rating: 5.0

लबों पर आ गए लफ्ज़ दरिया की मौजों को देखकर

कहीं खो से गए विशाल समंदर की गहराइयों की तरह


लगा ऐसा की पहुँच गए हैं अगले जनम तक

का रहे थे गुफ्तगू हम आपसे वत्सलता से

जैसे लहरें बातें करते आईं हैं किनारों से आज तक

दिवा स्वप्न था बैठे थे पास पास और मुंदी (बंद) आँखों

से सपने संजोते रहेंगे जन्मो जनम तक

ना साथ छोड़ेंगे आपका कई कई जन्मो तक

झकझोर दी किसी आहट ने सपनो की दुनिया टूटे सपने

जगा दिया और कहा ओ दिल मेरे दिले नादाँ न

घबराना इस जन्म की गर्म हवा के थपेड़ो से

क्यूंकि ये कब के जा चुके होंगे तब तक

कुदरत की बनाई इस जन्नत में निश्तब्ध शांति की गोदी में

निश्छल मन संग हम साथ रहेंगे जनमो जनम तक

थके हारे मन को दी शांति की कुछ सांसे इस स्वप्न ने

काश मिल जाये अगला जन्म हो जाये पा जाएँ साथ आपका

फिर कभी जुदा न हों हम क़यामत से क़यामत तक

Friday, July 7, 2017
Topic(s) of this poem: abc
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 07 August 2017

कल्पना और स्वप्न भौतिक जगत से अलग मनुष्य को ईश्वर की देन है. इन्हीं के आधार पर विश्व में विशाल साहित्य की रचना संभव हो पाई. कल्पना का मधुर संसार वास्त्विकता में बदल जाए इससे बढ़ कर क्या हो सकता है. लेकिन कल्पना बज़ाते ख़ुद भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. शुभकामनाएं व धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.

1 0 Reply
Pushpa P Parjiea 08 August 2017

sahi kaha aapne bhaai ye kalpna or swapn insan ko aasha or dilasa dete rahte hain or inki vajah se insaan ko aage badhane ki chah jagati hai or jivan ki thakaan kuchh pal ke liye hi sahi kam ho jati hai .. shubhkamnayen aapki mili mujhe ye mera saubhagya hai bhai kyunki isase mujhe aage likhne ka protsahan milta hai bahut bahut dhanywad

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