कौन जानता है
बीता हुआ कुछ नहीं लोटता
सिर्फ चोट पहुंचाता
बस याद बनके रह जाता
फिर एकदम से रुलाता।
वापस क्यों बुलाते हो?
वो पल के लिए क्यों दुखी होते हो?
वो तो एक सुखद सपना था
वो ना ही कभी अपना था।
गरीबी की अपना आलम था
महोब्बत का मौसम था
सब मिलबांट के खाते थे
कभी किसी को नहीं रुलाते थे।
वो दो चार आनी के लिए झगड़ना
फिर हँसके सब ठीकठाक करना
एक ही थाली में मिलकर खाना
फिर ठहाके मारके हंसना।
आज सब कुछ है पर वो नहीं
जो था वो नजर के सामने आता नहीं
कोशिश बहुत करते है पर आशा असफल हो जाती
बहुत मनाते फिर भी सामने नहीं आती।
नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल
हम चल बसेंगे कल
आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास
कौन जानता है कब छूटेगी सांस।
welcome rupal bhandari Like · Reply · 1 · Just now Manage
welcome manisha mehta Like · Reply · 1 · 3 mins Manage
welcome shikash deshbama Like · Reply · 1 · 2 mins Manage
welcoem subhash khandelwal Like · Reply · 1 · Just now Manage
नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल हम चल बसेंगे कल आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास कौन जानता है कब छूटेगी सांस।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
welcome sungeeta mehta Like · Reply · 1 · Just now