कौन जानता है Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कौन जानता है

कौन जानता है

बीता हुआ कुछ नहीं लोटता
सिर्फ चोट पहुंचाता
बस याद बनके रह जाता
फिर एकदम से रुलाता।

वापस क्यों बुलाते हो?
वो पल के लिए क्यों दुखी होते हो?
वो तो एक सुखद सपना था
वो ना ही कभी अपना था।

गरीबी की अपना आलम था
महोब्बत का मौसम था
सब मिलबांट के खाते थे
कभी किसी को नहीं रुलाते थे।

वो दो चार आनी के लिए झगड़ना
फिर हँसके सब ठीकठाक करना
एक ही थाली में मिलकर खाना
फिर ठहाके मारके हंसना।

आज सब कुछ है पर वो नहीं
जो था वो नजर के सामने आता नहीं
कोशिश बहुत करते है पर आशा असफल हो जाती
बहुत मनाते फिर भी सामने नहीं आती।

नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल
हम चल बसेंगे कल
आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास
कौन जानता है कब छूटेगी सांस।

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welcome megha kashid shah Like · Reply · 1 · 3 mins

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welcoem interpridshama Like

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नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल हम चल बसेंगे कल आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास कौन जानता है कब छूटेगी सांस।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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