वर्षा ऋतु की ये ठंडी फुहार,
जगाती दिलों में प्रकृति से प्यार |
हरियाली की चादर ओढ़ लेती है धरती,
मिट्टी की सोंधी खुशबू लाती है मदमाती बयार |
कभी मूसलाधार बारिश तो कभी रिमझिम फुहार,
तन-मन को भिंगोती है निर्मल जल की ये धार,
चारों ओर बज उठता है जैसे मेघ-मल्हार |
वर्षा के शीतल जल से धुलकर झूम उठते हैं पत्ते और टहनियाँ,
हर पल बनती-बिगड़ती हैं मेघों की आकृतियाँ |
प्रकृति में चहुं ओर बिखरा ये हरा-हरा रंग,
देता है आँखों को ठंढक और दिल में उमंग |
खेतों में रोपणी के गीत उठते हैं गूँज,
पपीहे की पुकार और मयूर का मनमोहक नृत्य,
कभी आसमान में उभर आते हैं इंद्रधनुष के खूबसूरत रंग,
रंगों की अद्भुत छटा देख मन रह जाता है दंग |
कभी कड़कती दामिनी के साथ मेघों का गर्जन,
करता दिलों में भय का सृजन |
कहीं दिखता है प्रकृति का रूप विकराल,
सबकुछ निगलने को आतुर उफनती नदियां मचाती हैं हाहाकार,
कहीं फटते हैं बादल और मचती है त्राहि-त्राहि की पुकार,
मानों इंद्रा के वज्र का हो जानलेवा प्रहार |
बागों में पड़ जाते हैं सावन के झूले,
विरहन का दिल तो संभाले न संभले |
आसमां से उतरकर पहाड़ियों से लिपट जाते हैं बादल,
जैसे हवाओं में लहराता किसी का हो आँचल |
वर्षा ऋतु का अनोखा है रूप,
आँखों से ओझल हो जाती है धूप |
स्फूर्ति तन-मन में सबके भर जाती,
ईश्वर की शक्ति का एहसास दिलाती,
सबके दिलों में बचपन जागती,
अरमानों का तूफान उठती,
बड़ी अनोखी हैं ये बारिश की बूंदें,
जीवनदायिनी हैं ये बारिश की बूंदें |
पेड़-पौधों के संग हँसिये-मुसकुराइए,
गरमा-गरम चाय के साथ पकोड़े खाइये,
रिमझिम बारिश का लुत्फ़ उठाइये |
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