कांप उठीये धरा
सोमवार, ३० दिसम्बर २०१९
कांप उठीये धरा
क्या करे आदमी बेचारा?
क्या है जनता का सहारा?
आकाश भी है लाचार और बेसहारा।
अपने ही बोजतले डूब जाएगी
धरा रसाताल जाएगी
सब का जीना दूभर हो जाएगा
आदमी आदमी को मारने दौड़ेगा।
ऐसे लोगोँ का नाम लेना भी पाप है
उसका कारण हम अपने आप है
जो दूसरों के दुःख का कारण बने हुए है
अपने आप में अभिशाप बने हुए है।
मातृभूमि की सेवा तो छोडो
कहते है "अपने आप आपस लड़ो "
एक दूसरे का नाश करो
मानवजात को लज्जित करो।
जब राक्षश प्रजाति पुप्त हो गई
तब राक्षसी लालसा सजीवन हो गई
अपनी ही माँ बेचने चले है
देश का खाना खाकर गद्दारीकर रहे है।
खुद से कुछ हुआ नहीं
अब अपनों का हीखून बहाना है
आपस में भिड़ाकर अपनाु ऊल्लू सीधा करना है
देश का जो होना है "हो" अपनी कुर्सी पाना है।
हसमुख मेहता
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खुद से कुछ हुआ नहीं अब अपनों का ही खून बहाना है आपस में भिड़ाकर अपनाु ऊल्लू सीधा करना है देश का जो होना है " हो" अपनी कुर्सी पाना है। हसमुख मेहता