रिश्ते Poem by Rakesh Sinha

रिश्ते

छोटी सी है जिंदगी इसे प्यार से जियो,
रिश्तों को अपने संवार कर जियो |
क्या हासिल होगा ईर्ष्या और द्वेष से,
अपनों के साथ ही बढ़ते क्लेश से |
समय तो रुकता नहीं चलता ही जाता है,
धीरे-धीरे मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाता है |
कहीं ऐसा न हो कि एक दिन जब पीछे मुड़के तुम देखो,
तो तुम्हारे मन में पछतावे का भाव उमड़े,
कि काश मैंने जिंदगी को यूँ न जिया होता,
रिश्तों की गर्माहट को ठंढा न किया होता |
जिंदगी के लम्हों को यूँ जाया न करो,
हर छोटी बात को दिल से लगाया न करो |
अपने तो आखिर अपने ही होते हैं,
दिल में कड़वाहट बसाया न करो |
गम और खुशियों के जाम मिलकर पियो,
सुख-दुख के पल आपस में बाँटकर जियो |

Thursday, August 24, 2017
Topic(s) of this poem: hindi,life,relationships
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