हमने सोचा, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हमने सोचा,

हमने सोचा, तुम्हें हार पहनाऊँ
अपने हाथों से गर तेरे;
सुमन सब टूट गये
, क्या बना लूँ अपनी बाहों को तेरा हार?
हे प्रियतम मेरे!

Tuesday, August 29, 2017
Topic(s) of this poem: love
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