अलग से पहचान
चरवाहा
कर गए स्वाहा
हमारा सब पशुधन
बस चाहिए सिर्फ धन।
जो गोपालक है
और दूध का धंधा करते है
वोही संरक्षक है
देश की संस्कृति के अंगरक्षक है
कल परसों लाखो की बलि चढ़ा दी जाएगी
अंधश्रद्धा के नाम पर अपना बलिदान कर जाएगी
लोग नहीं जान पाए है धर्म का मतलब
जबान बस चाहतिआ है में पीलु सब लबालब।
कइयों के धंधे है
कसाई नाम से जाने जाते है
हो कुछ हद तक परवानगी
बस नहीं होनी चाहिए दरिंदगी।
गाय को ही खाना और क़त्ल करना
फिर संविधान का मतलब समझाना
खाने को दुनिया भर का यहाँ उपलब्ध है
सभी उनकी दलील से स्तब्ध है।
धर्म और देश दोनों है महान
पर धर्म नहीं है चट्टान
देश की शान है
हमारी अलग से पहचान है।
जो पशु दूध देते है
और सशक्त है
उन्हें कत्लखाने ना भेजे जाय
और नाही क़त्ल होने दिए जाय।
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