मिट्टी में हम पैदा होते हैं, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

मिट्टी में हम पैदा होते हैं,

मिट्टी में हम पैदा होते हैं,
यहीं हम धूल में खेलते हैं,
यहीं का पैदा खाते -पीते हैं,
लेकिन कुछ बोलते रहते हैं,
खेल-बोल सकते न उनसे,
आँख आँसू बरसाते रहते हैंः

Monday, September 4, 2017
Topic(s) of this poem: life
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