हे कनक भवन विहारिणीविहारी,
अनन्त शत कोटि पल-पल प्रणाम।
युग-युग जीवो मेरे प्राण प्यारे -प्यारी,
दर्शन सुषमा-सुख नयनन अभिराम।।
हमने कहा जब, कितने सुन्दर लगते,
दिखा दिया प्यारे सुँदर मधुर मुस्कान।
हमने पा लिया सव^स्व सुख अपना,
कितनी सुँदर तिरछी मनहर तकान।।
हे श्रीसरयू जगदम्बे, मातामयी करुणा,
शरणागत बन अब करौं आर्त प्रणाम।
हे परम सुख प्रदायिनी महिमामयी देवि
निज मनहर अँक महँ, देहु परम विश्राम।।
जो करुणा रुप लखाय करि, पिलायो हे,
निज पयोधर उदधिरुप ममतामयी धार।
हे करुणामयी अब कीजिए कृपा-करुणा,
लीजिए भवसागर से मोहि अब बेगि उबार।।
मन मेरो भव-भीति देखि डरपत -हहरत,
कछु न पावत अब कहुँ आन उपाय ।
तुम ममतामयी महिमामयी, बनि विषम,
तब शरणागत भयो हम आज आय ।।
तुमने ममता-करुणा-कृपा भाव भरि,
कछुक बचन बोलि दियो, देवि, सुनाय ।
'नवीन'निकट काल जानि कै अब देवि!
हहरत बचन दियो आजु अबहिं सुनाय ।।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem