हिंदी Poem by Prabhakr Anil

हिंदी

Rating: 5.0

क्योहम ही पढ़े अंग्रेजी,
हिंदी अंग्रेज भी तो पढ़ सकते है।
सब सिस्टम की है गलती वरना,
बी टेक, एम टेक हिंदी में भी कर सकते है।

है देवो की ये भूमि यहां,
संस्कृत से सब डरते है।
अवधि का तो पता नही यहां,
हनुमान चालीसा भी अंग्रेजी में पढ़ते है।

दो शब्द बोल के देखो अंग्रेजी की,
कैसे कैसे मुँह बनाने पड़ते है,
अरे हिंदी तो सुन के रूठे भी,
युही मुस्कुराने लगते है।

ना गलती थी अंग्रेजी की,
ना अंग्रेज हमलावार रहे ।
आज बिलुप्त हो रही हिंदी,
इसके हम हि जिम्मेदार है।

हिंदी सुन सुन बड़े हुए,
हिंदी सुन के मर जायेंगे।
पर जब भी गुनगुनाना हो,
अंग्रेजीें में ही गुनगुनायेंगे।

ये कैसी लाचारी है? और,
हम क्यो इतने लाचार है?
हिंदी माँ कहलाती है,
क्या माँ का ये सम्मान है?

ये गधे को बाप बना लेंगे,
जो अंग्रेजी में बोले तो।
पर तुमको ये लतिया देंगे,
जो हिंदी में मुँह खोले तो।

अंग्रेजी ना जानो तो,
सारा प्रतिभा बेकार है।
आज विलुप्त हो रही हिंदी
इसके हम ही जिम्मेदार है।

Thursday, September 21, 2017
Topic(s) of this poem: feeling guilty
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 06 October 2018

really true... I really appreciate your thoughts... God bless you

1 0 Reply
Rajnish Manga 21 September 2017

बहुत सुंदर व सामयिक रचना.

3 0 Reply
Ap Nishad 21 September 2017

जी... धन्यवाद।।।

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Kotwan, . Barhaj deoria up
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