मान भी जाओ Poem by Utkarsh Tripathi

मान भी जाओ

Rating: 5.0

अब तो चाँद भी जा छिपा हैं बादलों में,
मान भी जाओ की ये बिखरी रौशनी तुम्हारी हैं ।

अब तो कोई फूल भी नहीं खिले हैं बागों में,
मान भी जाओं की ये बिखरी खुशबु तुम्हारी हैं ।

कब की जा चुकी हैं सर्द हवायें उस पर,
मान भी जाओं ये हवाएं नहीं बल्कि आहें तुम्हारी हैं ।

पतझड़ आ गया, नहीं हैं छाँव अब पेड़ों की गोंद में,
मान भी जाओं इस छाँव की वजह जुल्फें तुम्हारी हैं ।

सूरज कब की किरणे बिखेर रहा हैं आसमान में,
मान भी जाओं इस अँधेरे की वजह काजल तुम्हारी हैं ।

जमी, आसमान, पक्षी, बादल सब खिल रहे हैं,
मन भी जाओं की इसकी वजह हंसी तुम्हारी हैं ।

Thursday, October 5, 2017
Topic(s) of this poem: girlfriend,love,nature
COMMENTS OF THE POEM
Naila Rais 29 August 2018

Such a nice write..... Keep it up.. You may like to read my poems too....10 Naila

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