मनसा है दुखी करना Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मनसा है दुखी करना

मनसा है दुखी करना

जिंदगी सरकी जा रही है
धीरे से कान में समझा भी रही है
ना कर कल का इंतेझार
बस इशारे में ही समझ ले यार।

नहीं पकड़ सकते तुम समय के अनसार
वो तो कर देंगे आपको बीमार
यदि आप सोचने लगे बारबार
तो उसका हो यह अंतिम वार।

दुखी बिलकुल नहीं होना
भारी पड जाएगा वरना
बस विश्वास रखो और अपना काम करते रहो
जमाने के साथ कदम मिलाते रही।

मिटटी के साथ अच्छे सम्बन्ध रखो
उसीमे तो मिल जाना है सबको
बिता दो सुख के पल मिल झूलकर
रहो सुखी बस इंसान बनकर

नाही हमने गुलिस्तां को उझाडना चाहा
नहीं हमने किसी के लिए बुरा माना
बस लिख दिया नाम रेत के समंदर में
संतोष मान लिया अपने भीतर से।

नहीं रखना कोई समझौता
जो अपनों से दूर कर जाता
मुझे ऐसी मंझिल नही पाना
जो करे बंटवारा और जिसकी मनसा है दुखी करना।

चित्र: आशा शर्मा

मनसा है दुखी करना
Saturday, October 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 15 October 2017

Aasha Sharma Comments Aasha Sharma Aasha Sharma Much appreciate Hasmukh Mehta Ji. Like · Reply · 1 · 4 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 October 2017

नहीं रखना कोई समझौता जो अपनों से दूर कर जाता मुझे ऐसी मंझिल नही पाना जो करे बंटवारा और जिसकी मनसा है दुखी करना। चित्र: आशा शर्मा

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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