हमेशा अभिलाषी Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हमेशा अभिलाषी

हमेशा अभिलाषी

चेहरा आपका शुष्क हो सकता है
कुछ ना कहने पर मजबूर हो सकता है
जुबान होते हुए भी चुप रेहने पर उतारू है
पर ये उपाय सुचारु है।

आपको यही सब करना होगा
कुछ कहने पर सवको दुःख होगा
बेहतर यही होगा आप शांति रखे
खुद ही झहर का अनुभव करें।

कितना झुलम ढाया है लोगो ने आप पर
फिर भी चुप रहे और सहते रहे क्रूरता पर
आपका जुबान न खोलना एक उत्तम नमूना है
आपका कुसूर ना होते आप कुसूरवार है।

आप ज़िंदा होते हुए भी भीतर से जल रहे है
आप का मन नदी की धारा जैसा बह रहा है
आपके मन में किसी तरह की वैमन्सयता नहीं है
आप निर्मल और स्वच्छ मन के हमेशा अभिलाषी रहे है।

हमेशा अभिलाषी
Monday, October 16, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 October 2017

आप ज़िंदा होते हुए भी भीतर से जल रहे है आप का मन नदी की धारा जैसा बह रहा है आपके मन में किसी तरह की वैमन्सयता नहीं है आप निर्मल और स्वच्छ मन के हमेशा अभिलाषी रहे है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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