कुम्हार- मिट्टी के संग Poem by Dr. Sada Bihari Sahu

कुम्हार- मिट्टी के संग

Rating: 5.0

मिट्टी ही जीवन
धैर्य, निष्ठा, श्रम से
मिट्टी बन जाता है एक सुदंर सपन
मिट्टी के संग
बितता है हर दिन सुबह शाम
दे कर अपने कठिन परिश्रम
गढता हे एक नया जीवन
भूनता है अपने ममता से
पाने के लिए एक सुदृढ गठन
व्यवहार होता है उसकी निति दिन
हो साज सज्या या खान पान
समयक्रम से घटता गया इसका चलन
आधुनिक का आवरण ने छिन लिया उसकी जान
बढता गया प्लास्टीक और पोलिथीन की शान
बिगडता गया प्रकृति का संतुलन
आओ हम कुछ प्रण करें इसी क्षण
करने ना देगें इस धरती पर ओर आक्रमण
जिएगें, मरेगें प्रकृति संग
कियुं की मिट्टी ही जीवन
आए हैं मिट्टी से, जिएगें मिट्टी में, मरेगें मिट्टी में
मिट्टी ही हमारा हम सफर

Wednesday, December 20, 2017
Topic(s) of this poem: pottery
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Poem is in Hindi language and talk about potter.
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