हे नील श्यामल वण^ श्रीहरि Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे नील श्यामल वण^ श्रीहरि

हे नील श्यामल वण^ श्रीहरि!
हम करते आपका मुखकमल ध्यान।
कृपापूण^ श्रीहृदय कँज दर्शायें,
करायें दर्शन श्रीमहालक्ष्मी ललाम।।
पीत कँचनयुत हरित बदन प्रभापुँज,
सुवण^ रजत सुशोभित दिव्य हार।
सहस्त्र आदित्य सुधाकर सम आभा,
करुणानिधि करें दृष्टि आशीष उपहार।।
नील-पीत वण^मिल हरितवर बनते,
जानते योगी मुनि ऋषि सब सँतजन।
'नवीन'नित्य नव कृपा बरसाइये,
आज दिन बन जाये परम आनँदघन।।

Saturday, January 6, 2018
Topic(s) of this poem: love
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