सौभाग्य सूक्त Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सौभाग्य सूक्त

सौभाग्य सूक्त
परम पावन पुनीत प्रात: करते हम आवाहन सुरगण,
रुद्र वह्नि इन्द्र वरुण मित्र सोम गुरु अश्विनीसुत भग पूषण।
करें कृपा हम बालक पर, मँगल मूल मेरे भाग्य जागें,
दया-अनुग्रह करें दीन पर, 'नवीन'आपके पद- अनुराग पागें।।
प्रात: मँगलमय पल करते नमन, दिव्य देदीप्यमान दिवाकर,
तम शोक हारी, कृपानुग्रहकारी सव^विधि सँरक्षक प्रभाकर।
नृप हो या रँक दीन दरिद्र, सब बने रहते आपके सामने याचक,
विनय करते'नवीन' हम पुन: पुन: , कृपा करे हे वैभव ख्याति प्रदायक।।
हे भगवान भास्कर, पथ -दर्शक, सौभाग्यआपके कृपा-उपहार,
मन बुद्धि चित्त स्थिर रखते हे देव! करते दीन जन उद्धार।
हों हमारे तन-मन पुष्ट, परिजन परिकर सब बनें समृद्ध,
'नवीन' सब मँगल कर्म रहें रत, आपकी कृपा में रहें सदा आबद्ध।।
हे भगवान भास्कर! देव दिवाकर! शाँति सुख समृद्धि वैभव कीजिए प्रदान,
रवि उदय हो या अस्ताचल पल, हर घड़ी मिले करुणा समान।
अरुणोदय काल मिले दर्शन-कृपा, आशीष सब सुर मुनियों का,
'नवीन'सदा निर्मल मति बनी रहे, कृपा-करुणादृष्टिं देवियों का।।
सव^शक्तिमान परम देदीप्यमान देव! आप कृपा करें परमानंद,
प्रभापुँज तम मोह हारी, धवल ज्योति कारी, वष^ण करें आनँद।
तन-मन-वचन सह करते याचना, आप हमारे देव-गुरु-स्वामी,
कृपा करतें रहें, देव! सदा, 'नवीन' भास्कर प्रभु, हे अन्त: यामी।।
प्रातः कालीन पुनीत बेला करते जो हम आरँभ आत्मयज्ञ,
जानते नहीं कुछ तप-ब्रत-नियम-सँयम, मति परम अज्ञ।
तेज सैन्धव जैसे द्रुत गति से पहुँच जाते गन्तव्य,
योगीजन जैसे कर लेते प्राप्त कर लेते निज इष्ट ध्यातव्य।
वैसी ही कृपा करें, हे आचार्य भास्कर, आत्मयज्ञ हो पूण^,
आपकी अनुपम करुणा-कृपा से बन जाये'नवीन' जीवन सँपूण^।।
शाँति-सुख वैभव-प्रदायी हे देव रवि! सँकल्प बना दें दृढ़ निश्चयकर,
आत्म-प्राण शक्ति परिपूण^ बने, सब बिधि हो मँगलमय हितकर।
तन-मन-वचन सहित हम करते, आप श्रीगुरुदेव में समर्पण,
स्वीकार करें मुझे हे देव भास्कर! चाहता 'नवीन' आप श्रीगुरु चरण शरण।।
नहीं समिधा न ही बुद्धि बल, न ही जानता देव! मँत्रोच्चारण,
केवल आर्त अनन्य अगतित्व शरणागत हम,
पाहि पाहि, हे गुरुवर! श्रीशरणम्।।
@copyright
Navinupadhyay
2 Jan.2018

Saturday, January 6, 2018
Topic(s) of this poem: religious
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success