कोई बात चुभ रही है। Poem by Ahatisham Alam

कोई बात चुभ रही है।

एहसासों के दरिया में
कोई बात चुभ रही है
महफ़िल की, उजालों की
ये रात चुभ रही है।
तपिश में थे
तो ही भले थे
अब तो इस आलम को
बरसात चुभ रही है।

Wednesday, January 10, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and dreams
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