ये आलम ज़िंदा राह नही सकता Poem by Ahatisham Alam

ये आलम ज़िंदा राह नही सकता

दिले आलम बहुत बेताब है
बिछड़ के तुझसे
सुकून इसको तेरे सिवा कोई भी दे नही सकता



ये माना कि हँसीं हैं बहुत
नज़ारे मगर
तेरी जगह मेरे दिल में कोई भी ले नहीं सकता।

तने बेजान हूँ मैं
रूह तू है
तेरे बिना ये आलम ज़िंदा रह नहीं सकता

ये आलम ज़िंदा राह नही सकता
Saturday, January 20, 2018
Topic(s) of this poem: love
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