आज निकला हूँ उड़ने की ख़्वाहिश लिये,
पर दुनिया के आसमान में कहाँ तक जाऊंगा,
माँ मै तेरे दामन में फिर लौट आऊंगा।
दूर आँचल से तेरे तलाशता हूँ जो,
कुछ साथी, कुछ सपने, कुछ अपने,
हो सकता है मिल जाये मंज़िल मेरी,
पर स्नेहमयी बातों का सुख कहाँ पाउँगा,
माँ मै तेरे दामन में फिर लौट आऊंगा।
मुझे पता है समेट लोगी अंतर में अपने,
भूल शैतानियाँ मेरी, भूल नादानियाँ मेरी,
जीवन के हर पल हर गलती पर क्षमादान,
भला तेरे हृदय को छोड़ कहाँ पाउँगा,
माँ मै तेरे दामन में फिर लौट आऊंगा।
कुछ धुंधलका सा याद है मुझको,
मेरा रोना रातभर, तेरा जगना रातभर,
तू सलामत रहे मैं रहूं ना रहूं,
ऐसा विश्वास रिश्तों में कहाँ पाउँगा,
माँ मै तेरे दामन में फिर लौट आऊंगा।
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