परोक्षतः वह सप्तहोता बन गया, देवताओं को प्रिय परोक्ष नाम।।
स्वयं उसने कर लिया षड् बार जपे, स्वयं अपने
मन्त्र।
षडहोता नाम बनकर आया, आहुति स्वरूप निज तँत्र।।
उसी नाम से पुकारा जाता, तब उसका एक और नाम।
यद्यपि अगम अनादिनिधिनान्तस्वरुप उसका ही नाम।।
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