ऐ मालिक, सिर्फ इतना-सा मुझपर तू करम दे,
मुझे सनम से प्यारा मेरा वतन कर दे! !
कर दूँ निछावर तन-मन-धन सब अपना,
इतनी प्रज्वलित मुझमें राष्ट्रप्रेम की अगन कर दे! !
सकुचित न होऊँ क्षणभर भी सरफ़रोश बनने को,
ऐसी मनोवृति का मेरे ज़हन में जनम कर दे! !
अस्तित्व मिट जाए दहशतवादी नर-पिशाचों का इस धरा से,
और परे हो जाए मुल्क से गद्दारी की सोच भी ऐसे उसे तू दफन कर दे! !
मेरी माँ के आँचल के तले चैन से सो सकूँ मैं,
ऐसे विदा होने पर अता मुझे मेरे तिरंगे का कफन कर दे! !
ऐ मालिक, सिर्फ इतना-सा मुझपर तू करम दे! !
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