कॉलेज का वो पहला दिन! Poem by Sachin Brahmvanshi

कॉलेज का वो पहला दिन!

Rating: 5.0


एक पगली अनजानी-सी!

कॉलेज का वो पहला दिन, एक पल को आँखें चार हुईं,
थे अनजाने एक-दूजे से वो, फिर अनचाही तक्रार हुई,
वो एक पगली अनजानी-सी, जो प्यार उसीसे करती थी,
थी दिल की कमज़ोर बहुत वो, इज़हार करने से डरती थी I

कॉलेज उसका न आना, एक दिन भी न उसको गवारा था,
उसकी नज़रों में वो सारे जहाँ से भी प्यारा था,
वो एक पगली अनजानी-सी, दिन-रात उसी पर मरती थी,
थी थोड़ी शर्मीली-सी वो, यह बतलाने को डरती थी I

पलभर-भी उसका रूठ जाना, अब उसको तो दुश्वार हुआ,
उसकी मुस्कानभर को देख उस पगली का दिल गुल्ज़ार हुआ,
वो एक पगली अनजानी-सी, उसकी याद में आहें भरती थी,
थी थोड़ी नादान बहुत वो, इकरार कभी न करती थी I

बिन उसके अब दिन न चाहे, उसके बिन निशा न भाए,
ख्वाबों की शहज़ादी थी वो, पर उसको अब नींद न आए,
वो एक पगली अनजानी-सी, जो तन्हाई की बाहों में दीदार उसीका करती थी,
थी नाजुक वो कलियों-सी, ये समझाने से डरती थी I

जुदा थीं उनकी राहें, जुदा ठहरी तक़दीरें,
जो वो पगली कहती, अब सूझे न फिर कैसे जिएँ?
वो एक पगली अनजानी-सी, उसकी ख्वाहिश में तिल-तिल मरकर जीती थी,
थी बड़ी दीवानी-सी वो, उसकी खातिर खुद करार खोया करती थी I

थी मजबूर बहुत वो, हो अपनों से दूर बहुत वो,
अब तो बस उसको यादों का ही सहारा था,
डूबता जा रहा था दिल उसका प्रेमसरोवर में अब,
जब कि वो सामने ही किनारा था,
वो एक पगली अनजानी-सी, जो उसके लिए ही फरियाद,
हर रोज़ खुदा से करती थी,
थी ज़रा भोली-सी वो, यह बात कभी न कहती थी I

जो उसकी चाहत में उसके अपनों ने साथ छोड़ दिया,
बेरहमी कर किस्मत ने भी अपना रुख मोड़ लिया,
क्या कसूर था उस पगली का?
जो एक पगले पर मरती थी,
वो एक पगली अनजानी-सी, जो प्यार उसीसे करती थी,
थी दिल की कमज़ोर बहुत वो, इज़हार करने से डरती थी I

Wednesday, March 14, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and friendship
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 15 March 2018

प्रेम की उत्कटता इस कविता में शुरू से आख़िर तक नज़र आती है लेकिन साथ ही लड़कपन का कच्चापन भी झलकता है. वो एक पगली अनजानी-सी, जो प्यार उसीसे करती थी, थी दिल की कमज़ोर बहुत वो, इज़हार करने से डरती थी I

1 0 Reply
Sachin Brahmvanshi 15 March 2018

Thank you Sir!

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Sachin Brahmvanshi

Jaunpur, Uttar Pradesh
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