एक नज़र भर Poem by Sharad Bhatia

एक नज़र भर

Rating: 5.0

"एक नज़र भर"

खड़ा हूँ किसी एक कोने मे,
बस एक नज़र भर उसे देख रहा हूँ।।

वो यादे मेरी फिर ताजा हो गई,
जो बस एक नज़र भर उसे देख रहा हूँ।।

जानता हूँ वो मेरा अतीत हैं,
फिर भी बस एक नजर भर उसे देख रहा हूँ ।।

शायद वो मेरे पास आए, पूछे मेरा हाल ऐ दिल,
इस उम्मीद से बस एक नज़र भर उसे देख रहा हूँ।।

यादों का एक कोना था,
उस कोने मे वो थी।
आज वो कोना भी खिल उठा,
बस एक नज़र भर उसे देख जो रहा हूँ ।।

कभी खुलेआम, हम मिला करते,
आज मिलने से घबराहा हूँ,
इसलिये, बस एक नज़र भर उसे देख रहा हूँ।।

जानता हूँ, वो भी मुझे देख रही है,
अपने दिल को थोड़ा सुकूं दे रही है।।
शायद थोड़ी खुश हैं,
क्यूंकि बस एक नज़र भर जो उसे देख रहा हूँ

बस आँखों ही आँखों मे बातें हुईं,
इज़हार और इंकार की मुलाकातें हुई।।
थोड़ी सी पलके भी नमः हुई,
फिर अपने दिल को थोड़ा सुकूं दिया,
बस एक नज़र भर उसे देख जो लिया।।


एक प्यारा सा एहसास- "एक नज़र भर" पर मेरी नन्ही कलम से - शरद भाटिया

एक नज़र भर
Saturday, June 27, 2020
Topic(s) of this poem: emotion
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 29 June 2020

Ek nazar bhar use dekh raha hoon... Purani yadein phir taza ho gaye Ek nazar bhar use dekh raha hoon... Aaj aakho he aakho me Ezhaar aur inkaar ke mulakate hue Apne dil to thoda sukoon diya Ek nazar bhar use dekh liya... Ehsaason ka beshumar leher pani ke bauchaar saman dheeme dheeme choo jati hai roi ke komal ehsaas se. Beautifully penned. Beautiful. Admirations.

1 0 Reply
Rajnish Manga 28 June 2020

सुखमय पलों को और सुखद संबंधों को भूल पाना आसान नहीं होता इसलिए अपने सुकून के लिए हम उन्हें दिल के किसी कोने में रख लेना जरुरी समझते हैं. इसमें कोई बुराई भी तो नहीं है. यह अभिव्यक्ति अच्छी लगी.

1 0 Reply
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