महालक्ष्मी महाप्रिय घृत हवन वह्नि मध्य जो कर लेते,
सकल सुख सँपदा जगत की सहज अपने वश कर रखते,
अग्नि परम परात्पर ब्रह्म मुख जब हो जाता आवाहन,
माता सहज पधार जाती, कृपानुग्रहकारी होता वर्षण।।
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