हय स्वामिनी, गो दायिनी, महासमृद्धि सुख सँपत्ति।
कृपाकारिणी जनभयहारिणी चाहत चित तव पद रति।।
कोटि कुबेर तव द्वारे ठाढ़े, रहत सदा तव सेवा रत।
एकटक नयन बिल़ोकत गाढ़े, निरँतर नयन निरखतll
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