लाल तारा Poem by Ajit Pal Singh Daia

लाल तारा

एक तारों भरी रात
पैरापेट वाल पर बैठी थी तुम
और मैंने तुम्हारे लबों पर
दिया था एक चुम्बन
तो न तुम्हारा चेहरा
हुआ शर्म से लाल
और लाल नहीं हुए तारे भी
सिवाय एक तारे के
जो हो गया था लाल
क्योंकि उसमें बची हुई थी
अभी भी कुछ शर्म बाकी।

Saturday, May 5, 2018
Topic(s) of this poem: love and dreams
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