निगाहें फैलाए Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

निगाहें फैलाए

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निगाहें फैलाए

Wednesday, May 9,2018
3: 26 PM


प्यार तो मेरा भी कम नहीं था
पर नजर नहीं आता था
मज़बूरी थी, नहीं बता पाते थे
और बस देखते ही रह जाए थे।

खेर, उसने भी नहीं जताया
पर हमने दोस्तों को जरूर बताया
"नशीली आँखोंवाली" बताकर फोटो भी दिखाया
बस यही बात ने खून धमाल मचाया।

मैंने फिर से उसको देखा
उसने कर दिया, देखा ना देखा
मुझे हो गई उलझन
करना पड़ा बड़ा मंथन।

क्या मेरा दोस्तों से कहना
या फिर मेरा चुपचुप देखना
वजह हो सकती है
मेरे को लगा, ये बात मुझे पीटवा सकती है।

पहली बार मुझे झेंप सी आयी
उसने कभी अपनी नाख़ुशी नहीं बताई
मैंने सोचा " बहुत हो गया अब "
अब तो कह ही दो आज।

निगाहें मिली और उठी भी
पर उसकी बात में हंसी थी
बस इतनी सी बात पर सालों निकाल दिए?
हम तो कब से बैठे है निगाहें फैलाए!

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निगाहें मिली और उठी भी पर उसकी बात में हंसी थी बस इतनी सी बात पर सालों निकाल दिए? हम तो कब से बैठे है निगाहें फैलाए!

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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