रीत है कैसी प्रीत है कैसी, कैसी सोच हमारी
गुमसुम गुमसुम डरी डरी सी ख़ौफ़ज़दह है नारी
गली मोहल्ला घर दरवाज़ा गाओं शहर में लोगो
फैल रही है माँ बहनों में दहशत की बीमारी
एक परिंदे की चाहत है छु ले वह आकाश गगन
जहाँ ना कोई बंदिश होगी ना सरहद ना कोई वतन
अपने इस अरमान को पंछी कैसे करेगा पूरा
रस्ता बैठा देख रहा है शातिर एक शिकारी
भारत माँ की ममता को कर देता है शर्मिंदा
दुष्कर्मी है पापी है जो एक हैवान दरिंदा
सज़ा मिले वह ज़ानी को जो मौत भी थर्रा जाए
देश की जनता मांग रही है ऐसी ही तैयारी
सती बानी फिर सावित्री और माँ का फ़र्ज़ निभाया
सास बहु और दादी नानी हर अवतार में पाया
खिलता फूल चमन का है ये इसपर आंच ना आए
सदक़े इसके जान लुटादूँ जाऊं वारी वारी
: नादिर हसनैन
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