NADIR HASNAIN Poems

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शोर मची है है हंगामा हिन्दू मुस्लिम कहते हैं
ढोंगी मदारी गिरगिट जैसे लोग यहाँ भी रहते हैं

जिन्होंने अपनी बीवी को भी इज़्ज़त ना सम्मान दिया
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सदभाओ का पैग़ाम है बिहारी एलेक्शन
हिंदू ना मुसलमान है बिहारी एलेक्शन
नफ़रत की सियासत को हम पहचान गए हैं
जनता का है फ़रमान ये बिहारी एलेक्शन
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मैं दुआओं का तेरे तलबगार हूँ
तेरी फ़ुर्क़त के ग़म में मैं बेज़ार हूँ
किस्से अपनी सुनाऊँ दिल-ए-दास्ताँ
तुझसा ग़मख़ार मेरा ना है राज़दाँ
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(रे बदरा रे)

घटा घनघोर बन कर गरजता क्यों फ़क़त है
पता है जानता हूँ मेरे घर पे ना छत है
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किस रस्ते पर चल बैठे हम हरसू गहरी खाई है
चारों तरफ़ नफ़रत की आंधी काली घटाएं छाई है
कोई तो आए राह दिखाए ज़हरीली आंधी से बचाए
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ख़तरे में हर भाई है
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ग़फ़लत की चकाचौंध में मदहोश है दुनियां
बेहोश को भी होश में लाएंगे ज़लज़ले 
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कौड़ी से भी जान यहाँ पे सस्ती है
चारों तरफ़ सुनसान फ़िज़ा और पस्ती है
कोई ना खेबनहार भंवर में नैया का
घेरे हुआ तूफ़ान हमारी कश्ती है
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मिट्टी के घर में रहते थे इंसान खो गए।
पोख़तह मकान होते ही पत्थर के हो गए।
माँ बाप के लिए है खुला वृद्धा आश्रम।
ख़िदमत करेगा कौन वो सत्तर के हो गए।
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बचपन और बुढ़ापे में अजब सा एक नाता है
लुटा कर ज़िन्दगी बच्चों पे बूढ़ा मुस्कुराता है

जिगर के ख़ून से सींचा शजर फलदार होने तक
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अमल करना था जिस क़ुरआन की आयात पर हमको

उसे हमने फ़क़त अब तक दुआओं में पुकारा है
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