कौन कहता है,
यह विशालकाय पहाड़ राज़ नहीं रखते,
सरसराती हवा से अक्सर बातें हैं करते। कंकर-कनियों में तवदील हुए जब देखा,
तो मालूम हुआ...समय के अनुसार यह भी अौकात हैं बदलते।
पहाड़ों से कूदने वाले वे सफेद झरने,
डर गए होते तो नीचे ना गिरते।
पग-पग छलका वे जो छोटा सा नाला,
सहम गया होता तो आज बेहिसाब सागर ना होता।
नन्ही सी चिड़िया घौंसले से झाँकती,
बेहिसाब धरती का घेरा जो ताकती।
टहनी के टूटने से हिम्मत जो हारती,
तो हौंसलों के पंखों से अंबर ना नापती।
सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त है कुदरत से बिलकुल आश्व्स्त है.... Wahhh... Khoob kahe hain Sir😊
Nice poem, , , प्रकृति और आदमजात Friday, May 18,2018........ nice one...10 2: 24 PM धरती का नजारा अभी खुश्क है मौसम भी शुष्क है बस अब तो आगमन की ही देर है बस काले बादल छा जाए इतनी ही देर है पहाड़ के नजदीक ही अम्बर है यह कोई आडम्बर नहीं है सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त है कुदरत से बिलकुल आश्व्स्त है हम भी बिलकुल नचिंत है मानवजात भी चिन्तित नही है एक अजीब सा तालमेल है प्रकृति और आदमजात का सुमधुर मेल है। हसमुख अमथालाल मेहता
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Faith brings hope and hope leads to dedication and determination. पहाड़ों से कूदने वाले वे सफेद झरने, डर गए होते तो नीचे ना गिरते।