कौन कहता है Poem by Sona Khajuria

कौन कहता है

कौन कहता है,
यह विशालकाय पहाड़ राज़ नहीं रखते,
सरसराती हवा से अक्सर बातें हैं करते। कंकर-कनियों में तवदील हुए जब देखा,
तो मालूम हुआ...समय के अनुसार यह भी अौकात हैं बदलते।

पहाड़ों से कूदने वाले वे सफेद झरने,
डर गए होते तो नीचे ना गिरते।
पग-पग छलका वे जो छोटा सा नाला,
सहम गया होता तो आज बेहिसाब सागर ना होता।

नन्ही सी चिड़िया घौंसले से झाँकती,
बेहिसाब धरती का घेरा जो ताकती।
टहनी के टूटने से हिम्मत जो हारती,
तो हौंसलों के पंखों से अंबर ना नापती।

Thursday, May 17, 2018
Topic(s) of this poem: dedication,determination,faith,hope
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 09 June 2018

Faith brings hope and hope leads to dedication and determination. पहाड़ों से कूदने वाले वे सफेद झरने, डर गए होते तो नीचे ना गिरते।

1 0 Reply
Sona Khajuria 18 May 2018

सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त है कुदरत से बिलकुल आश्व्स्त है.... Wahhh... Khoob kahe hain Sir😊

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Sona Khajuria 18 May 2018

Shukriya Sir😊.... Apki behad khoobsurat rachna👍👍

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Nice poem, , , प्रकृति और आदमजात Friday, May 18,2018........ nice one...10 2: 24 PM धरती का नजारा अभी खुश्क है मौसम भी शुष्क है बस अब तो आगमन की ही देर है बस काले बादल छा जाए इतनी ही देर है पहाड़ के नजदीक ही अम्बर है यह कोई आडम्बर नहीं है सब अपनी अपनी मस्ती में मस्त है कुदरत से बिलकुल आश्व्स्त है हम भी बिलकुल नचिंत है मानवजात भी चिन्तित नही है एक अजीब सा तालमेल है प्रकृति और आदमजात का सुमधुर मेल है। हसमुख अमथालाल मेहता

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