चम्पा चमेली कलियों सा, जो तुमको है उपनाम मिला।
ये है कोमल मैं भी कोमल, तुमने भी खुद को मान लिया।
तुम भूल गयी मां अम्बे को, काली को, लक्ष्मी बाई को,
मैं अबला क्या कर सकती, इस बहम को मन में पाल लिया।
एक बार कड़क उन कांटो सा, खुदको तुम भी दर्शावो तो।
एक बार त्रिशूल, कटार, तलवार, निज हाथों में उठाओ तो।
थर थर कपेंगे जिन्होंने दुष्कर्म को सब कुछ मान लिया।
बस एक बार कालिका सा तुम भी, बिकराल रूप दिखलाओ तो।
इस दुनिया मे घुलना मिलना है, अब नियत देख व्यवहार करो।
जिसके लायक जो दिखता हो, उन शब्दो में ही वार करो।
अब छोड़ो उन मर्यादावों को जिसने तुमको कमजोर किया।
मुँह तोड़ो उन दरिंदों का, अपने हाथों से संघार करो।
जब जब धरती के उपवन में, पापों की घटा मंडरायी है।
नारी ने ही धर विकट रूप, अदम्य साहस दिखलायी है।
बेगम हजरत, अवंति बाई, रानी लक्ष्मी, झलकारी बाई।
सम्मान के खातिर खड्ग उठा, गोरो को धूल चटायी है।
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I wish everyone in the society can respect the women in the way which you have expressed in your poems....I have no words to appreciate now....You are far above the talent...God bless you