जंग इंसानियत से है Poem by mithilesh yadav

जंग इंसानियत से है

Rating: 5.0

जंग इंसानियत से है
अपनी हैवानियत संभाले लखना

हम प्यार करेंगे,
इजहार करेंगे,
तुम अपनी नफरत की धार तेज़ रखना ।।

जंग इंसानियत से है
अपनी हैवानियत संभाले लखना

हम शांत रहेंगे
धीरज रखेंगे
तुम अपनी चीखों का अस्तित्व संभाले रखना

जंग इंसानियत से है
अपनी हैवानियत संभाले लखना

हम सिर झुका लेंगे
तुझमे छुपे इस्वर के लिए
तुम अपने अंदर का शैतान जिंदा रखना

जंग इंसानियत से है
अपनी हैवानियत संभाले लखना

हराना हुनर नही हमारा
हम हार जाएंगे
जितना मकसद नही हमारा
हम मान जाएंगे

तुम जंग समझ के जितने की कोशिश करते रहो
हम हार के इस जंग में तुम्हें जीत जाएंगे

हम तो हार को जीत माने बैठे हैं
तुम अपनी जीत संभाले रखना

जंग इंसानियत से है
अपनी हैवानियत संभाले लखना

Tuesday, July 14, 2020
Topic(s) of this poem: humanity
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 31 July 2020

Pyar ki boli har dil par bhaari. Insaniyat ko zinda rakhna hai aur dheeraj banai rakhna hai. Bohot khoob Mithilesh.

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Unnikrishnan E S 16 July 2020

Lovely write. Very poignant. Your battle is against humanity. However hard you try your vile ways, you will never be able to subdue a humane heart... exquisite expression. Enjoyed reading.

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Rajnish Manga 14 July 2020

तुम जंग समझ के जितने की कोशिश करते रहो हम हार के इस जंग में तुम्हें जीत जाएंगे.... //.... इन दो पंक्तियों के ज़रिये हमें एक अमूल्य संदेश प्राप्त होता है. बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद. टाइप की कमियाँ सुधार ले यथा- इस्वर = ईश्वर / जितना = जीतना.

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