मजहब नहीं कहता
शनिवार, १६ जुन २०१८
हमारा मजहबनहीं कहता
वार करो उसपर जो हो निहत्था
उसकी जी जान से इबादत करता हो
नित्य उसकी बंदगी में लीन रहता हो।
कहाँ है जन्नत
यह धारणा है गलत
सब कुछ यहीं है
आपका फैसला भी होना यहीं है।
कोई भी धर्मपुस्तक ये नहीं आज्ञा नहीं देता
कोई भी धर्मगुरु इंसानों का खून बहाने को नहीं कहता
हर छोटी सी बात को हवा में तूर देता हो
लोगों की संपत्ति को नुक्सान पहूँचाता हो।
हम ने पढ़ा "रमजान में खून बहाओ "
उपरवाले को मुंह दिखाओ और जन्नत को पाओ
हमारे घर तभी आओ जब आपका शरीर गोलीओं से छलनी हो गया हो
घरपर तब तक नहीं आना जब तक मारा नहीं गया हो।
क्या करोगे तुम ऐसे लोगो को?
जो खाते है इस मुल्क का
पर झंडा दिखाते है दुश्मन देश का
क्या सोचते है देशवासी इन गद्दारों का?
कई मासूम, बेखबर होकर आज ईद मना रहे है
अपने उसूलों और मन्नत के साथ गरीबों को दान दे रहे है
हम नतमस्तक है ऐसे दोस्तों का
जो वतन पर तो गर्व करते है पर अदा भी करते है नमक का।
आतंक का क्या मजहब होता है?
बस उनको तो निर्दोषों का खून बहाना है
अपने ही सैनिकों को पत्थर का निशाना बनाना है
आतंकियों को पनाह देना है और घर में छिपाना है।
हसमुख अमथालाल मेहता
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आतंक का क्या मजहब होता है? बस उनको तो निर्दोषों का खून बहाना है अपने ही सैनिकों को पत्थर का निशाना बनाना है आतंकियों को पनाह देना है और घर में छिपाना है। हसमुख अमथालाल मेहता