एक दूसरे के पूरक Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

एक दूसरे के पूरक

एक दूसरे के पूरक
रविवार, २७ दिसम्बर २०२०

एक कौन केहता है?
आग और पानी ने में रिश्ता नहीं है?
एक जब घु -घु करके जलता है
पानी छिड़कने से वो आहिस्ता आहिस्ता थमता है।

आग और परवाना
दोनों ने कमाई है नामना
एक ने सीखा है जीना
दूसरे ने सीखा है मरना।

फूलों में भी है अश्क
बिख़र जाता है जब सामना हो जाता है इश्क
एक ने है बिखेरना मधुर खुश्बु
और खो जाना है स्वयंभू

साथ सब निभाना जानते है
प्यार में विश्वास भी करते है
अंत तक साथ निभाते है
अंतिम सांस तक प्यार का इजहार करते है।

मोमबत्ती देती है उजाला
साथ देता है पतला सा धागा
ये तो है सोने पे सुहागा
जो नहीं देता साथ वो कहलाता अभागा।

प्यार और समर्पण
उसीको होता है है अर्पण
जिन का प्यार दिखता है दर्पण
यही होते है सुनहरे पल।

डॉ जाडीआ हसमुख

एक दूसरे के पूरक
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
प्यार और समर्पण उसीको होता है है अर्पण जिन का प्यार दिखता है दर्पण यही होते है सुनहरे पल। डॉ जाडीआ हसमुख
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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