हम तेरे जिगर आशियाना बनाने आये हैं, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम तेरे जिगर आशियाना बनाने आये हैं,

हम तेरे जिगर आशियाना बनाने आये हैं,
तेरी नजरों में अश्कों के मोती चुगने आये हैं,
इस बार यदि मुझे मेरा जहां मिल बस गया,
अपनी किस्मत का सितारा बुलंद करने आये हैं।

Tuesday, September 11, 2018
Topic(s) of this poem: love
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