मेरे सामने ख़्वाबों का जहाँ ना रहा Poem by Ahatisham Alam

मेरे सामने ख़्वाबों का जहाँ ना रहा

मेरे सामने ख़्वाबों का जहाँ ना रहा
आज ज़मीं तो है पर आसमाँ ना रहा
ज़ख्म देती हैं कुछ यादें उन लम्हों की
जिनका बाक़ी अब नामों निशाँ ना रहा।

Sunday, December 30, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and life
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